Monday, June 30, 2008

त्रिकाल संध्या / Trikaal Sandhya

शास्त्रों में लिखा है, हमें दिन में तीन महत्वपूर्ण समय पर प्रभु को अवश्य याद करना चाहिए। यह तीन प्रकार के दान होते हैं।
  1. स्मृति दान
  2. शक्ति दान
  3. शान्ति दान
स्मृति दान
स्मृति दान प्रातः समय पर होता है। प्रातः उठते ही प्रभु को याद करते हुए, अपने कर अर्थात हाथों को देख कर यह श्लोक बोलने चाहिए,

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमूले सरस्वती।
करमध्ये तु गोविन्द: प्रभाते कर दर्शनम॥
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमंडले।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे॥
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमद्रनम्।
देवकीपरमानन्दम कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥

शक्ति दान
शक्ति दान भोजन के समय होता है। भोजन ग्रहण करने से पूर्व, प्रभु को याद करते हुए यह श्लोक बोलने चाहिए,

यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्विषैः।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचम्त्यात्मकारणात्॥
यत्करोषि यदश्नासि यज्जहोषि ददासि यत्।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्॥
अहं वैश्र्वानरो भूत्वा ग्राणिनां देहमाश्रितः।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्।।
ॐ सह नाववतु सह नौ भनक्तु सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावघीतमस्तु मा विहिषावहै।।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

शान्ति दान
शान्ति दान सोने के समय होता है। सोने से पूर्व, प्रभु को याद करते हुए यह श्लोक बोलने चाहिए,

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥
करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वाअपराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शंभो॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥

Sunday, June 29, 2008

सनातन धर्म ब्लॉग पर आपका स्वागत है |

॥ॐ जय श्री गणेशाय नमः॥

सनातन धर्म, यानी वह सत्य जिसका ना कोई आदि है, ना कोई अंत है। जो हमें जीवन का सत्य बताता है, जीवन जीना नही। श्री कृष्ण जी ने अपने पुण्य वचनो में गीता संवाद के समय बताया था की ॥कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेष कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोस्त्वकर्मणि॥ — भगवद्गीता २-४७, अर्थात हमें कर्म करते रहना है, और फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। यही सत्य है, यही सनातन धर्म है। आइये, हम मिल कर इस पुण्य और भव्य सत्य को समझे और हम धर्म की राह पर हमेशा चलते रहे, ऐसी प्रभु हम पर कृपा बरसाएं।


॥जय माता की॥ ॥हर हर महादेव॥
॥जय श्री राम॥ ॥जय श्री कृष्ण॥


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजान्यहम्॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥८॥

- श्रीमद्भगवद्गीता


॥राम काजु कीन्हे बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥

- श्री रामचरित्रमानस सुंदरकाण्ड दोहा १