Sunday, June 29, 2008

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॥ॐ जय श्री गणेशाय नमः॥

सनातन धर्म, यानी वह सत्य जिसका ना कोई आदि है, ना कोई अंत है। जो हमें जीवन का सत्य बताता है, जीवन जीना नही। श्री कृष्ण जी ने अपने पुण्य वचनो में गीता संवाद के समय बताया था की ॥कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेष कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोस्त्वकर्मणि॥ — भगवद्गीता २-४७, अर्थात हमें कर्म करते रहना है, और फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। यही सत्य है, यही सनातन धर्म है। आइये, हम मिल कर इस पुण्य और भव्य सत्य को समझे और हम धर्म की राह पर हमेशा चलते रहे, ऐसी प्रभु हम पर कृपा बरसाएं।


॥जय माता की॥ ॥हर हर महादेव॥
॥जय श्री राम॥ ॥जय श्री कृष्ण॥


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजान्यहम्॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥८॥

- श्रीमद्भगवद्गीता


॥राम काजु कीन्हे बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥

- श्री रामचरित्रमानस सुंदरकाण्ड दोहा १

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