Wednesday, July 2, 2008

श्री राम जी की स्तुतियाँ

ब्रह्मादि देवोंद्वारा भगवान् श्री हरी विष्णु जी की स्तुति


जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता।।

पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई।
जो सहज कृपाल दीनदायल करउ अनुग्रह सोई।।

जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा।।

जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनिबृंदा।
निसि बासर ध्यावहिं गुनगुन गावहिं जयति सच्चिदानंद।।

जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा।
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा।।
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा।।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा।।

सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहिं जाना।
जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना।।

भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा।
मुनि सिद्धि सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पदकंजा।।

जानि सभय सुरभूमि सुनि बचन समेत सनेह।
गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह।।

रक्ताम्भोजदलाभिरामनयनं पीताम्बरालंकृतम्
श्यामांग द्विभुजं प्रसन्नवदनं श्रीसीतया शोभितम्।
कारुण्यामृसागरं प्रियगणैर्भ्रात्रादिभिर्भावितं

वन्दे विष्णुशिवादिसेव्यमनिशं भक्तेष्टसिद्धिप्रदम्।।


कौसल्या माता द्वारा भगवान् की स्तुति


भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।।

लोचन अभिरामा तनु घनश्याम निज आयुध भुज चारी।
भूषन बनमाला नयम बिसाला सोभासिंधु खरारी।।

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।
माया गुन गयानतीत अमाना बेद पुरान भनंता।।

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता।।

ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रों प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै।।

उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै।।

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला अति प्रियशीला यह सुख परम अनूपा।।

सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं हरि पद पावहिं ते न परहिं भवकूपा।।

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार।।

यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रम:।
यत्पादल्पवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्।।


सीता जी द्वारा पार्वती जी की स्तुति


जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।।
जय गजबदन षडानन माता। जगत् जननि दामिनि दुति गाता।।

नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।।
भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।

पतिदेवता सुतीय महुँ मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष।।

सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी पुरारि पिआरी।।
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।

मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहीं कें।।
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।।

बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।।
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।।

सुनु सिय सत्य असीम हमारी। पूजिहि मनकामना तुम्हारी।।
नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।

मनु जाहिं राचेउ मिलिहल सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।

एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।

जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।

भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वाससरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा:स्वान्त:स्थमीश्वरम्।।

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