Saturday, July 12, 2008

धर्म के मोती

॥जय श्री राम॥


मोरारी बापू जी कहते हैं की तुलसी दास जी ने श्रीरामचरित्रमानस में कहा है की असमय के सात सखा है, धीरज, धर्म, विवेक, साहित्य, साहस, सत्यव्रत, तथा श्री राम जी में भरोसा|

कर्म से फल मिलता है परन्तु कृपा से रस मिलता है|

शान्ति के बिना सुख नहीं मिलता| वह विकृत हो जाता है|

मोरारी बापू जी कहते हैं की आम जीव के हृदय में मोह बसता हैं| यह भी सत्य है जो शास्त्र कहते है की सब जीव के हृदय में भगवान् बसते हैं परन्तु उनका अनुभाव उसी को होता है जो आध्यात्म की राह पर चलता है| श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने कहा है की ॥ईश्वरस्य सर्व भूतानाम॥ और मोह को तुलसीदास जी ने विनय पत्रिका में रावण कहा है की ॥मोह दसमौली तद भ्राद अंहकार॥ श्रीरामचरित्रमानस के लंका कांड में लिखा है की |एहिके के हृदय बस जानकी, जानकी उदर मम बास है| ॥मम उदर भुवन अनेक, लागत बाण सब कर नाश है॥ अर्थात् मोह रूपी रावण के हृदय में जानकी जी हैं| जानकी जी के हृदय में श्री राम जी हैं| श्री राम जी के हृदय में समस्त भ्रमांड है| बापू कहतें है की विज्ञान खोज करे तो पता चलेगा की समस्त भ्रमांड के हृदय में पृथ्वी है| पृथ्वी के हृदय में मनुष्य है| मनुष्य के हृदय में मोह है, और जीवन का चक्र ऐसे ही चलता है| तभी प्रभु श्री राम ने मनुष्य अवतार लिया था|

इश्वर अनुमान का विषय नहीं, हनुमान का विषय है|

विवेक वहाँ है जहाँ अंहकार, द्वेष, पाखण्ड और कपट नहीं है|

कार्यं करोमि न च किचित अहं करोमि। - योग वसिष्ट (Work I do; Not that I do it)

पूजनीय ऋगवेद में कहा गया है कि ॥आ नो भद्राः करतवो कष्यन्तु विश्वतो अदब्धासो अपरीतास उद्भिदः॥१-८९-१॥ - अर्थात् उत्तम विचार सभी ओर से आने दो। (May powers auspicious come to us from every side, never deceived, unhindered, and victorious, That the Gods ever may be with us for our gain, our guardians day by day unceasing in their care.)

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः। - अर्थात् धर्म उसकी रक्षा करता है, जो धर्म कि रक्षा करता है। (Dharm, when killed, kills and protects, when protected.)

आहार-निद्रा-भय-मैथुनश्च सामान्यम् एतद्पशुभिर्नराणाम्। हि तेषाम् अधिको विशेषः धर्मेण हीनः पशुभिः समानः॥ - अर्थात् भूक, नींद, भय, और पैदा करना यही मनुष्यों और जानवरों में समानता है, परन्तु 'धर्म' या 'धर्मोचित सही राह' ही एक ऐसी चीज़ है जो कि अगर मनुष्य छोड़ दे तो मनुष्य जानवर जैसा सामान्य हो जाएगा। (Food, sleep, fear, and producing offsprings - is common between humans and animals; It is only dharm that is unique to humans, without which, they are no better than animals.)

पूजनीय तैत्तिरीय उपनिषद् में कहा गया है कि ॥सत्यं वद धर्मं चर स्वाध्यायान्मा प्रमदः॥

संदर्भ सूची-

No comments: