Wednesday, July 2, 2008
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सनातन धर्म, यानी वह सत्य जिसका ना कोई आदि है, ना कोई अंत है। जो हमें जीवन का सत्य बताता है, जीवन जीना नही। श्री कृष्ण जी ने अपने पुण्य वचनो में गीता संवाद के समय बताया था की ॥कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोस्त्वकर्मणि॥ — भगवद्गीता २-४७, अर्थात हमें कर्म करते रहना है, और फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। यही सत्य है, यही सनातन धर्म है। आइये, हम मिल कर इस पुण्य और भव्य सत्य को समझे और हम धर्म की राह पर हमेशा चलते रहे, ऐसी प्रभु हम पर कृपा बरसाएं। ॥जय माता की॥
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